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आलू की खेती

  • Date: 28 Sep 2023

आलू की खेती 

हमारे देश में आलू उत्पादक राज्य की सूची में उत्तर प्रदेश अग्रिम स्थान पर है तथा किसानों और जन साधारण लोगों के दैनिक भोजन का प्रमुख भाग है। आलू के कंद में 75 से 80 प्रतिशत पानी, 16 से 20 कार्बोहाइड्रेट प्रतिशत, 2.5 से 3.0 प्रतिशत प्रोटीन, 0.6 प्रतिशत रेशा, 0.1 प्रतिशत वसा एवं खनिज पदार्थ 1 प्रतिशत पाए जाते हैं। गेहूँ, दूध एवं मांस की तुलना में आलू से प्राप्त प्रोटीन मानव शरीर के लिए अधिक लाभदायक है इसकी खेती प्रदेश के समस्त सिंचित एवं मैदानी क्षेत्रों में की जा सकती है।

उपयुक्त भूमि का चयन आलू की सफलतम खेती के लिए बलुई या हल्की दोमट भूमि, जो कार्बनिक पदार्थ से भरपूर हो, सबसे उपयुक्त मानी जाती है। बुवाई के समय मिट्टी भुरभुरी व उसमें पर्याप्त नमी का होना आवश्यक होता है। क्योंकि हल्की भुरभुरी व जीवांश युक्त मृदा में उचित तापमान व वायु संचार होने से कन्द का वृद्धि एवं विकास अच्छा होता है। आलू की खेती के लिए भूमि का अधिक अम्लीय या क्षारीय होना अच्छा नहीं होता है। अतः आलू की खेती के लिए 6.5 से 7.5 मृदा पी.एच. सबसे अच्छा माना जाता है।

भूमि की तैयारी खेत को तैयार करते समय पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें| उसके बाद 2 से 3 जुताई हैरो या देशी हल से करें, ध्यान रहे मिट्टी के ढेले तोड़ने एवं खेत को समतल करने हेतु प्रत्येक जुताई के बाद पाटा या सुहागा अवश्य लगाएँ| जिससे मिट्टी में नमी की पर्याप्त मात्रा बनी रहे।                         

बुवाई का समय

अगेती बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर

मुख्य फसल 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक।

 जैविक खाद व जैव उर्वरक

1. खेत में खाद की मात्रा का निर्धारण मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए| इससे मिट्टी में पोषक तत्वों की उपस्थिति का पता चलता है, जिससे खाद की सही मात्रा का निर्धारण करने में आसानी रहती है |

2. बुवाई से 20 से 25 दिन पहले 8 से 10 टन प्रति एकड़ की दर से अच्छी तरह सड़ी हुई कंपोष्ट खाद या गोबर खाद डालें|

3. मिट्टी जनित रोगों को रोकने के लिए ट्राइकोडर्मा व सूडोमोनास प्रत्येक 1 से 2 किलोग्राम प्रति एकड़ 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर नमी होने पर खेत में आखिरी जुताई से पहले प्रयोग करें|

आलू की फसल में बायोवेल जैविक उत्पादों के प्रयोग का समय 

1. बुआई के समय प्रति एकड़ 100 किलोग्राम सॉइल नेक्टर प्लस  तथा 5 किलोग्राम सॉइल पावर का इस्तेमाल कूंड़ में बीज के साथ करें|

2. बुआई के 22 से 25 दिन बाद पहली सिंचाई के समय 400 ग्राम रैपिड पोटैटो का प्रयोग सिंचाई जल के साथ तथा ओट आने पर 5 किलोग्राम सॉइल पावर का प्रयोग मिटटी चढ़ाने से पहले करें| 

3. जब फसल में कंद की बढ़वार हो रही हो तब 500 ग्राम सॉइल पावर नैनो का प्रयोग करें|

उन्नतशील किस्में 

1. अगेती कुफरी चन्द्रमुखी, कुफरी अलंकार

2. मध्यम कुफरी ज्योति, कुफरी बहार, कुफरी लालिमा 

3. पछेती कुफरी सिन्दूरी, कुफरी देवा, कुफरी चमत्कार, कुफरी बादशाह

बीज की मात्रा  8 से 10 कुन्टल आलू कन्द प्रति एकड़।  (35 से 40 ग्राम वजन के कंद)

बायो ट्रूपर 100 मिली. को 10 लीटर पानी में घोलकर कंदों को उपचारित करें।

बुवाई की दूरी मेड़ से मेड़ की दूरी 45 से 60 सेमी. रखनी चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सेमी. रखें।

सिंचाई की आवश्यकता पहली सिंचाई बुवाई के 22 से 25 दिन बाद करना चाहिए, इस बात का ध्यान रखें कि मेड़ आधे से अधिक न डूबे। उसके बाद 10 से 15 दिन के अन्तर पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करना आवश्यक होता है।

निराई गुड़ाई एवं मिट्टी चढ़ाना आलू के पौधे जब 15 से 20 सेमी. लम्बे हो जाये तो हल्की सिंचाई करके ओट आने पर खुरपी से खरपतवार निकाल दें और साथ ही मिट्टी को भुरभुरा करके इस समय दी जाने वाली खाद की मात्रा (साइल पावर) को देकर मिट्टी चढ़ा दें। मिट्टी चढाने की क्रिया कंदों की बढ़वार के समय भी करना जरुरी होता है।

फसल की खुदाई 

खेत में खुदाई करते समय कटे, सड़े आलू के कंदों को अलग कर लेना चाहिए, साथ ही ग्रेडिंग, पैकेजिंग तथा बाजार भेजने के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि आलू के छिलके को किसी प्रकार का क्षति नहीं होनी चाहिए जिससे बाजार भाव अच्छा प्राप्त होता है।   

उपज 

आलू की उपज उसकी प्रजाति, भूमि की किस्म, भूमि की उर्वरता और फसल की देख रेख पर निर्भर करती है। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों प्रति एकड़ अगेती किस्मों से 80 से 100 क्विंटल तथा  माध्यम और पछेती किस्मों से 120 से 160 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।  

आलू का भण्डारण  

आलू शीघ्र ख़राब होने वाली फसल है अत: इसके लिए अच्छे भण्डारण कि सुविधा का होना नितांत आवश्यक है।  

पर्वतीय क्षेत्रों में कम तापमान होने की वजह से वहां पर भण्डारण की कोई बिशेष समस्या नहीं होती है, परन्तु मैदानी भागों में आलू को ख़राब होने से बचाने के लिए इसे शीत भंडार गृह में रखने की आवश्यकता होती है। इन शीत भंडार गृहों में तापमान 1 से 4 डिग्री सेल्सियस और आपेक्षिक आद्रता 90 से 95 प्रतिशत होनी चाहिए।

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