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मृदा में सूक्ष्मजीवों का महत्व

  • Date: 12 Sep 2023

मृदा में सूक्ष्मजीवों का महत्व

जमीन की सबसे ऊपरी सतह, जहां तक फसलों की जड़े पहुंचती है या जिस पर सस्य क्रियाएं की जाती है, मृदा कहलाती हैं| मृदा में मुख्यत: खनिज, कार्वनिक पदार्थ,जल और वायु उपस्थित होता है।
खनिजों में विभिन्न तत्व विद्यमान होते हैं तथा कार्वनिक पदार्थो में फसलों व जंतुओं के सड़े गले अवशेष के साथ साथ अनेक सूक्ष्मजीव उपलब्ध होते है, जो कृषि के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण होते हैं| ये सूक्ष्मजीव मुख्यत: दो रूप में पाए जाते है।
लाभदायक सूक्ष्मजीव मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों को पौधों में उपलब्ध कराने में जबकि हानिकारक सूक्ष्मजीव मृदा जनित, वायु जनित या बीज जनित रोगों को बढ़ावा देते हैं।
मृदा मे सूक्ष्मजीवो के लाभ 
सूक्ष्मजीवों की प्रचुर मात्रा व सक्रियता से मृदा की सभी जैविक प्रक्रियाएं व मृदा का जैविक गुण प्रयाप्त रूप से सामान बना रहता है जो मृदा उर्वता को दर्शाता है।
मृदा में सूक्ष्मजीवों के द्वारा कई प्रकार के एंजाइम व हार्मोन उत्पन्न किए जाते है जो मृदा विलयन में घुलकर पौधो को पोषण प्रदान करता है। 
हम मृदा में जिस भी पोषक तत्त्व को उर्वरक के माध्यम से मृदा में प्रदान करते हैं सुक्ष्मजीवों के द्वारा ही उन उर्वरकों को उनके उस रुप मे लाया जाता है जिस रूप में पौधे उन्हें ग्रहण करते है| अर्थात मृदा में होने वाले सभी सकारात्मक रासायनिक अभिक्रियाओं के लिए सूक्ष्मजीव ही जिम्मेदार होते हैं जिसके माध्यम से पौधे पोषक तत्वों को अवशोषित कर पाते हैं। 
सूक्ष्मजीव वास्तव मे बहुत सारे सूक्ष्मतत्वों के श्रोत होते है अर्थात इनकी उपलब्धता में कार्वनिक पदार्थ पहले ह्यूमस में और बाद में पोषक तत्वों में परिवर्तित होता है।
सूक्ष्मजीवों की क्रियाशिलता जड़ो के पास अत्यधिक होती है जिसके वजह से पौधो को सभी तत्व उपलब्ध रुप से जल विलयन के रूप में प्राप्त हो जाता है और उसका पौधो के द्वारा उपयोग कर लिया जाता है।
सूक्ष्मजीवों के द्वारा जटिल से जटिल मृदा यौगिक को साधारण यौगिक में बदल दिया जाता है अर्थात उन तत्वों को भी उपलब्ध करवा दिया जाता है जो बहुत लंबे समय से मिट्टी में जटिल यौगिक बनकर पड़े रहते है।
सूक्ष्मजीवों के द्वारा मृदा में फसल अवशेष, कूड़ा, कचरा व जंतु अवशेषों को विखंडित किया जाता है जिसके मिट्टी में ह्यूमस उपलब्ध हो जाता है, ह्यूमस के उपलब्ध होने से मिट्टी की जलधारण क्षमता या पोषक तत्वों  की उपलब्धता में वृद्धि होती है।
सूक्ष्मजीव मृदा में होने वाली सभी भौतिक, रासायनिक व जैविक क्रियाओं में हिस्सा लेते है साथ ही मृदा के भौतिक, रासायनिक व जैविक स्थिति में सुधार भी करते हैं।
कुछ प्रमुख पोषक तत्व जैसे फास्फोरस जिसको मृदा में विस्थापन अत्यंत कम होता है जिनको सूक्ष्मजीवों के द्वारा ही विस्थापित किया जाता है साथ ही कॉम्प्लेक्स फास्फोरस को जीवाणुओं द्वारा उपलब्ध रूप में लाया जाता है।
सूक्ष्मजीवों जैसे राइजोबियम, एजोटोवेक्टर, एजोस्पिरिलम व ब्लू ग्रीन एल्गी के द्वारा सबसे अधिक महत्वपूर्ण तत्व नाइट्रोजन का मृदा में वातावरण से स्थिरीकरण किया जाता है जिससे मृदा की सेहत में सुधार होता है।
सूक्ष्मजीवों से होने वाली हानियां 
मृदा जनित रोगों का मुख्य कारण सूक्ष्मजीव होते है क्योंकि इनके स्पोर मिट्टी में लंबे समय तक सुसुप्तवस्था में पड़े रहते है तथा अनुकूल अवस्था मिलने पर पुनः सक्रिय होकर बीमारी फैलाते हैं।
मिट्टी में अत्यधिक सूक्ष्मजीवों की संख्या होने से ये पौधों के साथ न्यूट्रिएंट्स व जल के लिए प्रतिष्पर्धा करते हैं।
मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या अधिक होने से मृदा अम्लीय हो जाती है जिससे कार्वनिक पदार्थ का क्षरण तेजी से होने लगता है।
निष्कर्ष                  
इस प्रकार सूक्ष्मतत्व खेती में वरदान सिद्ध हुए हैं इनकी उपलब्धता पर ही मृदा के सभी गुण स्थिर होते है तथा जड़ो की बढ़वार भी अच्छी होती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सूक्ष्मजीवों की सक्रियता से ही मृदा में धन आयन विनिमय क्षमता में वृद्धि होती है जो मृदा में पोषक तत्व उपलब्ध करवाने हेतु बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है| अर्थात सूक्ष्मजीवों की सक्रियता से हानिकारक लवण का भी निस्कारण हो जाता है साथ ही साथ मृदा की सभी भौतिक, रासायनिक व जैविक क्रियाएं भी संतुलित रहती हैं।
 

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