गन्ने का पोक्का बोइंग रोग एवं उसका नियंत्रण

पोक्काबोइंग गन्ने की एक गौण बीमारी है जो एक प्रकार की फफूंद से प्रसारित होती है। यह रोग गन्ने की फसल में जुलाई, अगस्त व सितम्बर माह में देखने को मिलता है। बारिश आने के साथ तथा तापमान में कमी और वातावरण में नमी बढ़ना इस रोग के फैलने की सबसे अनुकूल स्थिति मानी जाती है। यदि इस रोग का उपचार समय रहते नहीं किया गया तो प्रभावित फसल की उत्पादकता पर बेहद विपरीत प्रभाव देखने को मिल सकता है।
रोग की पहचान इस रोग से ग्रसित फसल में तीन तरह के लक्षण दिखाई देते हैं।
रोग के पहले चरण में
पत्तियों के निचले हिस्से में पीलापन दिखाई देता है।
प्रभावित पत्तियां सामान्य पत्तियों की तुलना में छोटी, मुड़ी हुई, एक दूसरे में फंसी हुई और विकृत दिखाई देती हैं।
रोग के दूसरे चरण में यह रोग की सबसे गंभीर अवस्था होती है।
संक्रमित पौधों का शीर्ष सड़कर भूरे या काले रंग का हो जाता है।
पत्तियों से संक्रमण नीचे की ओर बढ़कर गन्ने की पोरियों को भी प्रभावित कर देता है।
रोग के तीसरे व अंतिम चरण में
इस दौरान गन्ने की पोरियों पर अन्दर और बाहर कटे हुए धारियों के निशान नजर आते हैं।
इसके अलावा गन्ने की बढ़वार भी रुक जाती है।
रोग की रोकथाम के लिए
खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।
गन्ने की बुआई सदैव फफूंदनाशक से उपचारित करके ही करें।
उचित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करें।
रोग से प्रभावित गन्नों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें।
बायो ट्रूपर एंटीस्ट्रेस पाउडर का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर सामान रूप से स्प्रे करें।