धान का ब्लास्ट रोग तथा धान का टुंग्रो रोग

धान का ब्लास्ट रोग तथा धान का टुंग्रो रोग
धान भारत की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक है जो कुल फसल क्षेत्र के 1/4 भाग को कवर करती है। चावल विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या का मुख्य भोजन है। चावल के वैश्विक उत्पादन में चीन के बाद भारत का द्वितीय स्थान है। वर्ष 2022-23 में चावल का कुल उत्पादन 12.5 करोड़ टन रहा है। चावल की खेती का वर्ष 2022-23 में कुल क्षेत्रफल 4.55 करोड़ हेक्टेयर है, जिसकी औसत उत्पादकता लगभग 4.1 टन प्रति हेक्टेयर है। देश में धान की खेती ज्यादातर खरीफ के मौसम में की जाती है। यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है।
प्रमुख रोग:
1- धान का ब्लास्ट रोग:
रोगजनक: पाइरिक्युलिया ओरेजा (यौन अवस्था: मैग्नापोर्थे ग्रिसिया)
प्रभावित अवस्थाएँ: अंकुरण से लेकर कल्ले एवं बालियां निकलने तक की सभी फसल अवस्थाएं।
धान का ब्लास्ट रोग, सबसे घातक रोगों में से एक है। यह रोग धान के पौधों के सभी भागों को प्रभावित करता है, इनमें मुख्य रूप से पत्तियां, गर्दन और गांठों को। इससे अनाज में 70-80 प्रतिशत तक नुकसान होने की आशंका रहती है.
लक्षण:
· धान की पत्तियों का फटना – केंद्र में स्लेटी रंग और किनारों पर भूरे रंग के तंतु के आकार के धब्बे, जो बाद में ‘जले हुए’ दिखाई देते है l
· धान का नेक ब्लास्ट – पौधे की गर्दन पर भूरे रंग के घाव व पुष्पगुच्छ टूट कर गिर जाते है l
· धान की गांठों का फटना – पौधे की प्रभावित गांठों पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते है जो बाद में टूट जाते है l
अनुकूल परिस्थितियाँ:
इस बीमारी के लिए लंबे समय तक या लगातार वर्षा वाले क्षेत्र, मिट्टी की नमी कम, ठंडा तापमान और लगभग 93-99 प्रतिशत की उच्च सापेक्षिक आर्द्रता अति संवेदनशील होती है।
रोग प्रबंधन
· बीज को सदैव ट्राइकोडरमा से उपचारित करके ही बुवाई करना चाहिए।
· बीज का चयन रोगरहित फसल से करना चाहिए।
· फसल में रोग नियंत्रण हेतु बायोवेल का जैविक कवकनाशी बायो ट्रूपर की 500 मिली. मात्रा का प्रति एकड़ में 120 से 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
2- धान का टुंग्रो रोग:
रोगजनक: राइस टुंग्रो वायरस (आरटीएसवी और आरटीबीवी)
प्रभावित अवस्थाएँ: पौधे की सभी विकास अवस्थाएँ, विशेष रूप से वानस्पतिक अवस्था
रोग वाहक : लिफ हॉपर्स
धान का टुंग्रो वायरस, चावल की खेती के लिए सबसे हानिकारक रोगों में से एक है.
यह वायरस दो वायरसों के संयोजन से होता है, जो लीफ़हॉपर द्वारा फैलता है. टुंग्रो वायरस से प्रभावित पौधों में ये लक्षण दिखाई देते हैं:
लक्षण:
· पौधे छोटे रह जाना,
· पत्तियों का रंग पीला या नारंगी-पीला हो जाता है.
· पत्तियां पीले से नारंगी रंग में बदरंग हो जाना l
· पत्तियों का रंग पीला या नारंगी-पीला हो जाता है.
· पत्तियों पर जंग जैसे रंग के धब्बे हो सकते हैं.
· कल्लों की संख्या कम हो जाती है.
· पत्तियां छोटी हो जाती हैं.
· पुरानी पत्तियों के किनारे से पत्तियों का रंग हरे से हल्का पीला, हल्का पीला से नारंगी पीला और नारंगी पीला से भूरा पीला हो जाता है.
· दाने बंजर या आंशिक रूप से भरे हुए हो जाते हैं.
अनुकूल परिस्थितियाँ :
संक्रमित पौधे के ठूंठों और खरपतवारों के माध्यम से रोगवाहकों और वायरस स्रोतों की उपस्थिति आरटीवी संक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थितियां है।
रोग प्रबंधन:
यदि फसल धान टुंग्रो वायरस से संक्रमित है, तो इसे प्रबंधित या ठीक नहीं किया जा सकता है। नीचे दिए गए उत्पादों का उपयोग वाहक को नियंत्रित करने और इसे धान के खेत में वायरस को फैलने से रोकने के लिए किया जा सकता है.
· फसल में रोग नियंत्रण हेतु बायोवेल का जैविक कीटनाशी बायो सेवियर की 20 मिली प्रति 15 लीटर पानी में अथवा 200 मिली प्रति एकड़ में 120 से 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए
· फसल में रोग नियंत्रण हेतु बायोवेल का जैविक कीटनाशी गार्डियन की 20 मिली प्रति 15 लीटर पानी में अथवा 200 मिली प्रति एकड़ में 120 से 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए